Ikkhuras 100% organics product

The Identity of Indian Food is satvikta, purity and healthy

भारतीय दर्शन में हमेशा सात्विक भोजन को शुद्ध,श्रेष्ठ ,पावित्र आदि शब्दों से परिभाषित किया जाता रहा है जैसे दूध,मेवा, फल आदि शाकाहारी वस्तुएं जो स्वास्थ्य वर्धक है ,मन को शांत और पवित्र बनाती है ,आलस्य मिटाती है और जीवन को उन्नत बनाती हैं।

परन्तु समय के साथ साथ आज सात्विक नाम से मिलने वाले भोजन में भी सत का अंश नही रहा।आज जिस भोजन को हम शाकाहारी और सात्विक समझ कर ग्रहण कर रहे है वह भी मानो तामसिक और राजसिक भोजन के अदृश्य अवगुणों से व्याप्त हो चुका है।

आज फसल उगाने से लेकर भोजन बनाने तक हर जगह भयानक केमिकल और कीटनाशक का इस्तेमाल हो रहा है।एक ओर जहां कम समय मे अधिक फसलें उगाने के उद्देश्य से फसल में खतरनाक केमिकल डाले जा रहे है तो दूसरी तरफ तैयार भोजन सामग्री को अधिक समय तक चलाने के लिए स्वास्थ्य के लिए हानिकारक reservetives और उन वस्तु का मूल्य सस्ता करने के उद्देश्य से अन्य घटिया किस्म के और एक समान दिखने वाले सस्ते पदार्थ की मिलावट की जा रही है  और इन सबका कारण है हमारी स्वयं की मानसिकता -"सस्ताऔर टिकाऊ"।ध्यान रहे जो सस्ता है वो टिकाऊ नही हो सकता और जो टिकाऊ है वह सस्ता नही मिल सकता। 

अब आप स्वयं सोचिए ,यदि ऐसे भोजन आपके पेट मे जाता है तो वो आपके स्वास्थ्य पर क्या असर डालता होगा। पके शारीरिक ही नही मानसिक स्तर को और आध्यात्मिकस्तर को कितना प्रभावित करता होगा।ऐसे भोजन के कारण ही या तो आप अपने स्वास्थ्य के लिए किसी डॉक्टर के पास मिलते हैं या किसी आध्यात्मिक गुरु जो आपके मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन को स्थिर कर सके।जो पैसा अच्छे खाने में इस्तेमाल किया जा सकता था अब वह मात्र व्यर्थ हो रहा होता है और परिवार की सुख शांति भंग होती है,वह अलग।इसलिए हम समझते हैं कि  आर्गेनिक की परिभाषा मात्र प्रारम्भिक चरण में होने वाले कीटनाशक रहित जैविक उत्पादन से नही अपितु मध्यम और अंतिम चरण में तैयार होने वाले खाद्य पदार्थो के बिना मिलावट पूरी तरह से pure होने से भी है। 

सात्विक भोजन शाकाहार को माना जाता है यानी जो मांस से रहित हो।अन्य दर्शन में जहाँ स्थूल जीवो को अपना भोजन न बनाना शाकाहार और सात्विक कहा जाता है तो  जैन दर्शन इससे ओर एक कदम ऊपर बढ़कर मात्र स्थूल यानी पंचेन्द्रिय ही नही अपितु एक इन्द्रिय से पंच इन्द्रिय तक किसी भी जीव के जीवन को  यथाशक्ति बिना नुकसान पहुंचाए बनाये हुए भोजन को सात्विकता के श्रेणी में रखता आया है ।जैन दर्शन का यह कार्य बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है जिसमे प्रत्येक कार्य में बहुत विवेक ,शुद्धता और सावधानी से वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है ।किसी भी उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले जल को जीवाणी विधि (सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव की यथाशक्ति रक्षा हेतु वैज्ञानिक तरीके से पानी निकालना)द्वारा कुएं से निकाल कर ,उसे ऐसे कपड़े से छानकर जिसमे सूरज की रोशनी भी न आर पार हो सके (सूक्ष्म जीवों को कपड़े के ऊपर
ही रोक लेने के लिए) उसके पश्चात उसमे से  सब प्रकार के हानिकारक तत्व समाप्त करने के उद्देश्य से गर्म किया जाता है और कच्चे माल को अच्छे से साफ करके उसी शुद्ध जल से धोकर,सुखाकर,उसकी अन्य सभी अशुद्धियां समाप्त कर  इस्तेमाल किया जाता है ।

Ikkhuras 100% इसी पद्धति का अनुसरण करके ही पूरी तरह से शुद्ध और बिना मिलावट के सभी खाद्य पदार्थ तैयार करता है जो वास्तव में सात्विकता की परिभाषा को पूर्ण करते हैं।

Ikkhuras मानता है कि आज के इस चकाचोंध युग में सभी के लिए ऐसे उत्तम भोजन की अत्यंत आवश्यकता है। आज हर व्यक्ति सुख और शांति की खोज में है परन्तु "जैसा खावे अन्न,वैसा होवे मन,जैसा पीवे पानी,वैसे होवे वाणी" इस सूक्ति के अनुसार ही सब प्रभाव देखने मे आ रहे है।

Ikkhuras एक प्रयास है  विश्व मे वह शांति लाने का,स्वस्थ जीवन के आधार का और सम्पूर्ण विश्व में अहिंसा के आधार से सम्पूर्ण विश्व की उन्नति में सहायक बनने का ,क्योंकि प्रत्येक मनुष्य के मानसिक,शारीरक और बौद्धिक विकास से ही विश्व मे शांति हो सकती है।

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