*जैन व्रती अहारशाला में बना भोजन दुनिया का श्रेष्ठतम भोजन है**
जैन दर्शन में व्रती अहारशाला को एक प्रयोग शाला के रूप में वर्णित किया गया है जिसका मुख्य उद्देश्य ऐसे भोजन का निर्माण करना है जो मर्यादित हो ,शुद्ध हो,सात्विक हो ,स्वास्थ्य वर्धक हो और मन मस्तिष्क को ऊर्जावान रखने में सहायक हो।इस आहार शाला के तो मजबूत स्तम्भ है व्रती श्रावक और श्राविका ,जो भोजन सामग्री की सभी मर्यादाओं का ध्यान रखकर भोजन तैयार करते हैं जिससे वो जैन मुनियों को ऐसा प्रासुक और शुद्ध आहार दान देकर उनके तप में सहायक बनते हैं।
*आखिर क्या है ये भोजन की मर्यादा का अर्थ??*
जी हाँ, आप बिलकुल सही समझे हैं।मर्यादा यानी limitation।जैसा कि हम सब जानते हैं कि विज्ञान में, बाजार के अंदर मिलने वाले सभी प्रकार की खाद्य पदार्थो को ग्रहण करने की एक निश्चित समय सीमा बताई जाती है जिसे हम Expiry date कहते है,यह expiry date ही भोजन की मर्यादा है जो यह निर्धारित करती है कि वस्तु कितने समय के बाद खराब हो जाएगी और खाने योग्य नही रहेगी।विज्ञान के अनुसार जब किसी भी खाद्य पदार्थ का सम्पर्क वायु,जल ,नमीं ,अथवा वातावरण में घुले हुए अति सूक्ष्म जीवों से होता है तो एक समय सीमा के बाद वह वस्तु सड़ी हुई,दुर्गन्धित एवम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानी जाती है। जैन दर्शन में इस समय सीमा को ही मर्यादा कहा गया है ।आधुनिक विज्ञान में तो वस्तु की एक बार expiry date निर्धारित होने के बाद उस समय तक पैकेट बंद चीजो को सुरक्षित माना जाता है परन्तु जैन दर्शन इससे कहीं अधिक सूक्ष्मता से इस विज्ञान को जानता है और मानता है।जैन दर्शन में मौसम और एक निश्चित कालावधि के अनुसार वस्तुओं की मर्यादा में भी अंतर होता है।यही कारण है कि जैन दर्शन में पैकेट बंद वस्तुओं को खाने का और पैकेट बंद पेय पदार्थों को ग्रहण करने का निषेध है क्योंकि वह कैंसर जैसे घातक रोगों का कारण है।
जैन दर्शन मे अन्तर्मुहूर्त यदि 48 मिनट कालावधि का बहुत महत्व माना जाता है।
जैन दर्शन के अनुसार कुएँ से पानी निकालकर छानने के पश्चात और गाय आदि का दूध निकालने के पश्चात 48 मिनट की अधिकतम सीमा अवधि के अंदर चूल्हे पर रखकर गर्म कर लेना अथवा उबाल लेना चाहिए क्योंकि उसके पश्चात उनसे अनन्त सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति हो जाती है और वह पुनः अमर्यादित हो जाता है।दूध से बने अन्य उत्पाद जैसे घी ,पनीर आदि भी इस मर्यादित दूध के द्वारा ही तैयार किये जाते हैं।
उसी प्रकार अन्य सभी खाद्य पदार्थ जैसे आटा, दालें ,मसाले आदि की भी मौसम के अनुसार अपनी अपनी मर्यादाएं जैन दर्शन में बहुत सूक्ष्मता से बताई गई हैं।इनका पूर्ण रूप से पालन कर मर्यादित भोजन करने वाले जैन मुनि व्रती श्रावक एवं श्राविकाएं होती हैं जो इस शुद्ध भोजन को ही ग्रहण करते हैं।सभी वस्तुओं को प्रासुक जल से शुद्ध करना और मर्यादा अनुसार इस्तेमाल करना एक बहुत बड़ा विज्ञान है।
जैन दर्शन की इस भोजन पद्धति को विश्व के सभी देशों ने माना है ।जो लोग यह बात जानते है कि जैन दर्शन की व्रती अहारशाला में बना भोजन संसार में श्रेष्ठतम भोजन है ,वह चाहे व्रती हो या अव्रती ,जैन अव्रती ग्रहस्थ हो अथवा किसी अन्य सम्प्रदाय से हो ,सभी इस व्रती अहारशाला के उत्तम भोजन सामग्री को अपना करके अपने स्वास्थ्य पर ओर अपने जीवन पर बहुत बड़ा उपकार कर रहे हैं।
**इक्खुरस अहारशाला का प्रयोजन**
आज के आधुनिक भाग दौड़ में जहां आहार शाला के योग्य प्रामाणिक एवं शुद्ध ,मर्यादित खाद्य सामग्री कहि भी आसानी से प्राप्त नही हो पाती ,साथ ही आज जहां हम इस वैज्ञानिक जैन पद्धति को अपनाना भी चाहे तो इस लिए नही अपना पाते क्योंकि या तो हमारे पास इतना समय नही होता अथवा हमारे घर इतने विशाल नही होते की हम इन सब खाद्य सामग्री को घर मे शुद्ध करके ,सुखाकर इस्तेमाल कर सके।
ऐसे में इक्खुरस की भावना हुई कि कुछ ऐसा किया जाए कि पूरे विश्व मे कोई कही से भी इन उत्तम ,शुद्ध ,मर्यादित वस्तुओं को खरीदना ओर इस्तेमाल करना चाहे चाहे वह कोई अव्रती श्रावक हो अथवा व्रती श्रावक अथवा वह किसी मुनिराज को आहार दान करना चाहे अथवा यह सामग्री किसी त्यागी व्रती अथवा मुनियों के लिए दान स्वरूप देना चाहे ,अथवा वह कोई इस प्रकार के उत्तम भोजन को ग्रहण करने की सोच वाले अजैन बंधु ही क्यों न हो,सबको एक ऐसा Plateform मिल जाये कि सभी उसपर आकर घर बैठे बैठे यह शुद्ध समान का लाभ उठा सकें।यह शुद्ध खाद्य सामग्री हमारे और आपके शारीरिक,मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक बनेगी ।
दुनिया के किसी भी कोने से कोई भी व्यक्ति यह
वस्तुएं खरीदकर अपने जीवन को समृद्ध बना सकता है।
